“अनकही”
जुलै 6, 2013 यावर आपले मत नोंदवा
न जाने आज क्यूँ सब बिखरसा गयाँ,
सवरना ही था पर तेरा खयाल छूँ गयाँ|
हर मंजर पर तेरा निशाँ वाक्किफ था,
रुबरु होना ही था, पर तूँ मुडता चला गयाँ|
कौनसा साहील और कौनसा पता है तेरा,
आसमान ही था, हर तारा तूँ दिखता गयाँ|
शर्मसार दिखता है हर चेहरा इन गलियोंमे,
इत्तेफाक ही था, तूँ सभी को दर्पण बाँटता गयाँ|
बदगुमान हूँ, तूँ एहसास है या फिर है जिंदगी
बेखबर ही था, हर साँसमे तूँ घुलता गयाँ|
-निलेश सकपाळ
-०१ जुलै २०१३
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